-प्रेम पुनेठा
शहीदे आजम के जन्म दिवस पर विशेष।
भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों का ही प्रभाव था कि आगरा के एक छोटे से गांव का हेमचंद्र भूमिगत आंदोलन का सदस्य बन गया। उसने सारी जिंदगी के लिए अपना मूल नाम भी छोड़ दिया और सारी जिंदगी देश को समर्पित कर दी। भगत सिंह के बताए रास्ते और समाजवादी विचारों के लिए उसने कालापानी की सजा भी सहर्ष स्वीकार किया। अाज सब लोग उन्हें ठाकुर राम सिंह के नाम से जानते हैं।
राम सिंह बताते हैं कि जब उन्होंने 1930 में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की सदस्यता ग्रहण की थी। तब तक संसद में बम फेंकने के आरोप में भगत सिंह अपने साथियों के साथ गिरफ्तार हो चुके थे, लेकिन अदालत में दिए उनके बयान और गुप्त तौर से आए संदेशों को वे पार्टी सदस्यों के साथ जनता के बीच ले जाने का काम पर्चे, पोस्टर के माध्यम से करते थे। राम सिंह का कहना है कि उन दिनों वे अजमेर की इकाई में काम करते थे और गुप्त तौर से जनता के बीच पर्चे और पुस्तकें छपवा कर जनता के बीच बांटा करते थे। इन पर्चो के माध्यम से समाजवादी विचार और रिपब्लिकन आर्मी के बारे में जागरूकता फैलाने का काम करते थे।
उन्होंने बताया कि 1930 में भगत सिंह को जेल से छुड़ानें की योजना भी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी ने बनाई थी। इसलिए रणनीति तय करने और हथियार इकट्ठा करने के लिए लाहौर को केन्द्र बनाया गया था। इस काम के लिए अजमेर की उनकी इकाई से मदन गोपाल यादव के नेतृत्व में तीन सदस्य भी गए थे। लाहौर में जिस मकान में संगठन काम कर रहा था वहां सदस्यों की लापरवाही से बम विस्फोट हो गया। इससे पूरा मकान ही ध्वस्त हो गया। सभी साथियों को तत्काल लाहौर छोड़कर भागना पड़ा और भगत सिंह को छुड़ाने की योजना को त्यागना पड़ा।राम सिंह ने बताया कि भगत सिंह की शहादत के कुछ समय बाद ही चंद्र शेखर आजाद भी शहीद हो गए थे। यह संगठन के लिए बड़ा झटका था। इसके बाद भी दिल्ली स्थित केन्द्रीय कमेटी के नेतृत्व में इकाइयां क्रांतिकारी गतिविधियां संचालित करती रहीं। इन गतिविधियों का आधार भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारियों के विचार ही होते थे। आजादी विरोधी पुलिस अफसरों को मारना तब भी जारी था। भगत सिंह की रणनीति की तरह ही 1935 में एक पुलिस अफसर की हत्या कर दी गई थी। यह पुलिस अफसर मेयो कॉलेज में मिले रिवाल्वर और नीमच से डायनामाइट चोरी की जांच करने के लिए अजमेर आया था लेकिन इन जांचों की आड़ में वह मध्य भारत की राजनीतिक गतिविधियों पर नियंत्रण लगाना चाहता था। उसके नापाक इरादों को भांपते हुए राम सिंह ने अफसर को गोली मार दी। इस मामले में उन्हें कालापानी की सजा सुनाई गई।
आज भी राम सिंह शहद भगत सिंह स्मारक समिति के अध्यक्ष हैं और उनके विचारों के प्रति समर्पित हैं। उनका मानना है कि जिन लक्ष्यों और विचारों को उन्होंने क्रांतिकारियों से ग्रहण किया, न तो आजादी उसके अनुरूप मिली और न देश के नेताओं ने जनता को मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। राम सिंह का मानना है कि आज देश नेतृत्वविहीन हो गया है। धीरे-धीरे अमेरिकी साम्राज्यवाद हमें निगलता जा रहा है। देश के लिए यह एक बड़ी कठिन स्थिति है।
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