Tuesday, December 4, 2007

खतरे से खाली नहीं है ब्‍लड बैंक का रक्‍त चढ़वाना

बीमारी के दौरान जो रक्‍त आपको चढ़ाया जा रहा है, वह एड्स और हेपेटाइटिस बी तथा सी का कारण बन सकता है। यह जरूरी नहीं है कि ब्‍लड बैंक से मिल रहे रक्‍त में इन दोनों बीमारियों का वायरस बिल्ङुल ही न हों। आपके अपनों का खून भी आपके जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है। विशेषड्टाों के अनुसार एचआईवी इंफेक्‍शन के छह महीने से छह साल तक जांच में वायरस का पता नहीं लगाया जा सकता है। ब्‍लड बैंक में रक्‍तदान करने वाले 50 प्रतिशत से अधिक नशेड़ी होते हैं। वे रुपये के लिये रक्‍तदान करते हैं। केवल पीसीआर जांच में ही वायरस की संख्‍या की जानकारी मिल सकती है। लेकिन यह जांच 99 फीसदी ब्‍लड बैंक में नहीं है।

साइंटिफिक पैथोलॉजी केन्‍द्र के डॉ. अशोक शर्मा का कहना है कि एचआईवी की जांच के अब कई तरीके आ चुके हैं। इसकी सेंसटिविटी र्‍यादा है, लेकिन एक हद तक ही। उनका कहना है कि इंफेक्‍शन के बाद शुरुआती स्तर पर एचआईवी की जांच में वायरस नजर नहीं आ सकता। लेकिन, गौर करने वाली बात यह है कि ब्‍लड में वायरस कितनी संख्‍या में हैं। शुरुआती स्टेज के मरीज का रक्‍त चढ़ाने के काफी समय के बाद मरीज में एड्स के लक्षण दिखेंगे। यही हाल मलेरिया पैरासाइट बीमारी का भी है। इसके भी वायरस रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर ही असर दिखाते हैं।

एसएन मेडिकल कॉलेज में भी इस मसले पर चिंता बढ़ गई है। एसएन मेडिकल ङङ्खॉलेज के प्राचार्य डॉ.एनसी प्रजापति का कहना है कि आम तौर पर एचआईवी पॉजिटिव होने की 83 प्रतिशत जानकारी किसी अन्‍य बीमारी के दौरान ही पकड़ में आती है। रक्‍त चढ़ाने से पहले पैकेट पर एचआईवी और हेपेटाइटिस बी व सी निगेटिव लिखा हुआ होना जरूर देख लेना चाहिए। इस वक्‍त एकमात्र यही विकल्प है। मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के डॉ. बलबीर सिंह का कहना है कि एचआईवी वायरस के संङ्रमण के छह महीने से छह साल तक आदमी बिलङुल सामान्‍य स्थिति में रहता है। ऐसी स्थिति चालीस से पचास प्रतिशत लोगों में देखने को मिली है। मात्र पंद्रह प्रतिशत लोगों रोग प्रतिरोधक क्षमता में भारी कमी संक्रमण के एक साल बाद ही दिखने लगता है। यह संबंधित त्‍यक्ति में पहले की रोग प्रतिरोधक क्षमता, खान-पान और जीवन स्तर पर निर्भर करता है।
हेपेटाइटिस बी और सी उतनी ही खतरनाक है जितना एड्स। कई बार इंफेक्‍शन होने के बाद पीलिया, पेट में दर्द जी मचलाना लक्षण होते हैं और हल्‍के इलाज के बाद मरीज ठीक हो जाता है। इस दौरान कई बार पता नहीं चलता है कि हेपेटाइटिस बी या सी का वायरस शरीर में मौजूद है। लेकिन सात-आठ वर्षों बाद फिर पीलिया शुरू हो जाता है और पेट में पानी भर जाता है। ऐसी स्थिति में उसे बचाना खतरनाक होता है। यही स्थिति कुछ अन्‍य बीमारियों में भी होती है। एचआईवी का पता लगाने के लिये सीडी फोर और पीसीआर की जांच में कम से कम चार हजार रुपये का खर्चा आता है। यदि इन बीमारियों के प्रारंभिक लक्षण वाले मरीजों का खून किसी को चढ़ा दिया जाए तो उसे भी यह बीमारी होनी ही है।

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