-सन्मय प्रकाश
जहरीली मछली यमुना में आ चुकी है। मछुआरों की जाल में बुधवार को ताजमहल के पास फूगू नामक मछली फंस गई। इस जापानी मछली के मुंह के नीचे गेंद की तरह बनावट है। विशेषज्ञों के अनुसार इस मछली के लीवर, अंडाशय और स्किन में 'टेट्रोडोटॉक्सीन' नामक जहरीला पदार्थ होता है। यह जहर विद्युत गति से दिमाग के सेल में सोडियम के चैनल को ब्लॉक कर देता है। साथ ही मांसपेशी पैरलाइज हो जाता है और व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। 24 घंटे के भीतर ही मछली खाने वाले की मौत हो जाती है। यमुना में इस मछली के पाया जाना खतरनाक संकेत माना जा रहा है।
फिशरीज इंस्पेक्टर रघुवीर सिंह के मुताबिक 'टेट्रोडोटॉक्सीन' की वजह से मछली को खाने के तुरंत बाद व्यक्ति को सांस लेने और बोलने में समस्या उत्पन्न हो जाती है। 50 से 80 प्रतिशत लोग खाने के 24 घंटे के भीतर मर जाते हैं। थाइलैंड में पिछले वर्ष अज्ञात विक्रेताओं ने इस मछली को लोगों में बेच दिया था और इससे 15 लोगों की मौत हो गई। 150 लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया था।
अब सवाल उठने लगा है कि आखिर यह मछली यमुना में कैसे आई। संभव है कि विशेष प्रकार के मछली पालने के शौकीनों ने इस भारत में लाया हो और बाद में इसे नदी में छोड़ दिया गया हो। यह जानबूझ कर यमुना में अन्य जीवों को नष्ट करने की शरारत हो सकती है। यमुना की मछलियों को खाने वालों के लिये जीवन और मौत का संकट संकट उत्पन्न हो गया है। जहरीली मछली को खाने लायक पकाने के लिये जापान में लाइसेंसधारी शेफ होते हैं। उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। वह जहरीला पदार्थ हटाकर मछली को खाने योग्य बनाते हैं। लेकिन जहर बच जाने की स्थिति में हर वर्ष भारी संख्या में लोग मरते हैं। डॉक्टरों ने इस मछली को न खाने और मिलने पर जमीन में गाड़ देने की हिदायत दी है।
जापानी मछली के यमुना में मौजूदगी का मतलब है कि इससे जुड़ी नदियों में भी वह फैल चुकी है। चंबल में घड़ियालों की मौत का राज प्राणघातक फूगू मछली भी हो सकती है। यमुना और चंबल के संगम स्थान इटावा में अब तक करीब दो डॉल्फिन और 92 घड़ियाल मर चुके हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की टीम भी अब तक मृत्यु का मूल कारण नहीं पता लगा सकी है। हालांकि घड़ियालों में लेड और क्रोमियम भारी मात्रा में पाया गया है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि फूगू मछली के खाने से भी जल के जीवों की मौत हो रही है।
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