Monday, September 24, 2007

बादल

-तारकेश्‍वर प्रसाद सिंह*

जब बादल का बीज सहेजती
प्रकृति होती है खुश
मुझे लगता है
उसकी खुशियों के कितने आयाम हैं
मसलन फूल की खुशी
चिडियों का पंख
होता जाता है और बड़ा
और इंद्रधनुषी
उसके बोल और प्‍यारे

जब बादल की कोपलें फूटती हैं
वनों में मृग दौड़ लगाने लगते हैं
ताल तलैयों की मछलियां
उछलने लगती हैं
धरती बिना जबान खोले
अपने अंदर पैदा करने लगती है
सुन्‍दरता के कई प्रतिमान
धरती आंखुआने लगती है
छोटे-छोटे बच्‍चे बारिश में भींगते
छोड़ते चले जाते हैं
कविता को पीछे और पीछे
सभ्‍यता के मालिकों के
कुकर्मों से उपजा शब्‍द
'पर्यावरण', प्रदूषण छोटा लगता है
उसकी चिंता बौनी

जो लोग धरती को मुठ्ठी में
बंदकर चाहते हैं दौड़ पड़ना
उनके सामने चुनौती अपने अणु परमाणु
भांति-भांति के नाश का सामान
फेंक कर शरणागत हो
धरती की छाती विशाल है
आओ जैसे मां के पास
आता है छोटा बच्‍चा
जैसे घोसले में आती है चिडिया

*कवि बैंक ऑफ बड़ोदा के मुजफ्फरपुर शाखा में कार्यरत है।

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