पारिस्थितकीय असंतुलन का असर व्यापक होता जा रहा है। ब्रज क्षेत्र से गुजरने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला के विनाश के साथ ताजमहल का सुरक्षा कवच खत्म हो रहा है। खान माफिया भरतपुर, मथुरा, और आगरा के ताज ट्रेपेजियम जोन (टीटीजेड) में हर दिन डायनामाइट से पहाड़ों के परखचे उड़ा रहे हैं। खनन के साथ ही साल दर साल पहाड़ घटते जा रहे हैं और राजस्थान से चलने वाली धूल भरी आंधी सीधे आगरा पहुंच रही है। रेत के कण लगातार ताजमहल पर प्रहार कर रहे हैं। इसके संगमरमर का लगातार क्षय हो रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि अगर पहाड़ों के खनन को न रोका गया तो इस स्मारक की खूबसूरती का ह्रास जारी रहेगा।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पिछले बीस सालों के आंकड़ों ने चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। सीपीसीबी के अनुसार वर्ष 1987 में आगरा में एसपीएम की मात्रा 416 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर धूलकणों को मापा गया था। जबकि वर्ष 2006 में यह आंकड़ा बढ़कर 637 माइक्रोग्राम हो गया है। अरावली पर्वत और उसका घना वन रेगिस्तान की धूल भरी आंधी को आगरा की ओर जाने से रोकता है। लेकिन कई पर्वतों की मौत के बाद आंधी को रोकने वाला यह कवच भी खत्म हो गया है। वर्ष के आठ महीने आगरा को ऐसी आंधियों का कोप झेलना पड़ता है।
टीटीजेड क्षेत्र में अरावली की पर्वत श्रृंखला के उत्खनन पर सर्वोच्च न्यायालय रोक लगा चुकी है। फिर भी तमाम नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाकर भतरपुर के कामां, मथुरा के बरसाना तहसील के चिकसौली गांव, अगरा के अछनेरा तहसील स्थित पुरामना और बहरावती तथा फतेहपुर सीकरी के पास राजस्थान सीमा के डाबर गांव में पहाड़ों से सैकड़ों ट्रक पत्थर हर दिन निकाले जा रहे हैं। प्रत्येक पहाड़ के आस-पास पत्थर तोड़ने की क्रशर मशीन लगी है। पत्थरों के खनन के साथ ही साल दर साल हजारों घने पेड़ों को काटा जा रहा है। दहशत में डालने वाली डायनामाइट के विस्फोट की आवाज के साथ ही पहाड़ों पर कई जिंदगियां भी खत्म होती है। सीपीसीबी के अधिकारी डॉ:डी साहा की रिपोर्ट के मुताबिक चार-पांच वषों में हुई खुदाई से समूचा वन क्षेत्र तहस-नहस हो गया है। इसके साथ ही पर्यावरणीय समस्याएं भी उत्पन्न हो गई है।
ताजमहल के संरक्षण के लिए विशेष क्षेत्र को टीटीजेड घोषित किया गया था। फिर भी यहां विनाशलीला चल रही है। डॉ:साहा के मुताबिक ताजमहल की खूबसूरती में कमी आने और नुकसान का यह बड़ा प्राकृतिक कारण है। गौरतलब है कि विश्वदायक स्मारक ताजमहल को सुरक्षित रखने के लिए के नाम पर आगरा और इसके आस-पास के क्षेत्रों के 212 उद्योगों और 450 ईंट भट्ठों को बंद कराया जा चुके हैं। इसके कारण धूलकणों की मात्रा वर्ष 2001 में थोड़ी कमी आई थी। लेकिन अब स्थिति और गंभीर हो चुकी है। पहाड़ों की रक्षा में ब्रज रक्षक दल कुछ वर्षों से आंदोलन छेड़ रखा है। दल के अध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण का कहना है कि ब्रज पर्वत श्रृंखला के कटने से रेगिस्तानी भू-भाग बढ़ रहा है। पर्वतों का विनाश कर गड्ढे छोड़े जा रहे हैं। ब्रज के पर्वत 17800 एकड़ में फैले हुए हैं। इतना बड़ा क्षेत्र होने के कारण कृष्ण की लीलास्थली पर खनन माफिया की नजर है। आमलोगों को पर्वत के बचाव के लिए आगे आना होगा।
-सन्मय प्रकाश
2 comments:
अच्छा विषय. आपका स्वागत है.
प्रयास करते रहें।
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