कीठम में पानी जरूरत से ज्यादा..
पानी की लड़ाई में प्रवासी परिंदे पिस रहे हैं। भरतपुर के केवलादेव नेशनल पार्क में सूखा पड़ गया है। राजस्थान के करौली में पांचना डैम बनने के बाद यह समस्या आई है। दूसरी ओर आगरा के कीठम पक्षी विहार में जरूरत से ज्यादा पानी जमा है। दोनों ठिकाने पक्षियों के अनुकूल नहीं हैं। ठंड के साथ ही हजारों की तादाद में एशियाई परिंदों के आगमन का समय अब शुरू होने वाला है। भरतपुर में पानी न मिलने पर वे कीठम के सूर सरोवर पहुंचते हैं। लेकिन यहां वन विभाग और सिंचाई विभाग के बीच चल रही तनातनी ने पक्षियों के लिए मुसीबतें खड़ी कर दी है। कम पानी में रहने वाले (वैडर) पक्षी को कीठम में भोजन की मुसीबत उत्पन्न हो गई है।
पिछले वर्ष मात्र 80 हजार परिंदों ने कीठम पक्षी विहार में ठिकाना बनाया था। यहां 135 प्रजाति के एशियाई पक्षी प्रवास करते हैं। इस बार भी पर्यावरणविद् निराश दिख रहे हैं। सूर सरोवर में सिंचाई विभाग पानी कम करने को तैयार नहीं है। दरअसल, सरोवर में दिल्ली के ओखला नहर से पानी आता है और कीठम से मथुरा रिफाइनरी और किसानों को भी पानी आपूर्ति की जाती है। पक्षी विहार की चिंता किए बगैर हमेशा पानी बनाए रखने के लिए सिंचाई विभाग सरोवर को पानी से भरा रखते हैं। वन विभाग के रेंज ऑफिसर आरबी उत्तम के अनुसार इस वक्त यहां 22 फुट पानी जमा है। जबकि पक्षियों के रहने के लिहाज से 15 फुट से ज्यादा पानी नहीं रहना चाहिए। इससे सरोवर के किनारे के हिस्से में दलदल बना रहता है। इसी जगह पर ज्यादातर कीड़े-मकोड़े, घोंघे, सीप, झिंगुर, छोटी मछलियां, घास आदि मिलते हैं। परिंदे इसे खाकर जिंदा रहते हैं। यह ठीक उसी प्रकार होता है जिस तरह खेतों में हल जोतते समय किसान के पीछे-पीछे पक्षी घूमते रहते हैं। वे यहां कीड़े खाते हैं।
सरोवर में ज्यादा पानी रहने से परिंदों के पर भीग जाते हैं। वन विभाग ने पर सुखाने के लिए हैपिटैट (पानी में बना स्थल क्षेत्र) बना रखा है। लेकिन सिंचाई विभाग ने सूर सरोवर में इतना पानी डाल दिया है कि हैपिटैट भी डूब चुके हैं। किनारे का घास भी पानी में चला गया है। 1991 में इस विहार को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया, लेकिन यह अब तक कागजों पर ही संरक्षित है। बर्मा, पाकिस्तान, चीन, साइबेरिया आदि देशों से आने वाले पक्षियों को काफी दिक्कतें होती है। फिलहाल करीब 20 हजार देशी पक्षियों ने ठिकाना बनाया हुआ है। पिछले वर्ष करीब छह सौ विदेशी सैलानियों ने कीठम में पक्षियों को देखने के लिए भ्रमण किया था।
दूसरी ओर राजस्थान के करौली जिले में पांचना डैम बनने के बाद यहां के निवासी पानी छोड़ने नहीं देते हैं। इससे भरतपुर का केवलादेव नेशनल पार्क केवल मानसून पर निर्भर रह गया है। लेकिन यहां बारिश इस लायक नहीं होती है कि पक्षी विहार में पानी जमा हो और प्रवासी परिंदों का ठिकाना बन सके।
2 comments:
sanmay
mujsai tumahara mobile number miss ho gaya hai, heh message padatai hi call karna
सच में बड़ी विकट समस्या है। वो भी इस देश में जहाँ अतिथी को भगवान का दर्जा दिया जाता था।
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