Friday, January 11, 2008

प्रदूषण की देन तिलपिया निगल गई यमुना की मछली

मथुरा से इटावा तक अब मांसाहारी तिलपिया का साम्राज्‍

-सन्‍मय प्रकाश .....
प्रदूषण की देन तिलपिया ने यमुना में अन्‍य प्रजाति की मछलियों पर कहर बरपा दिया है। शरीर पर कांटे वाली इस मछली के कारण देसी मछलियों का अस्त्वि खतरे में पड़ गया है। यमुना से मछलियों की 10 से अधिक प्रजातियां लुप्‍त हो चुकी हैं। जबरदस्‍त प्रदूषित जल में रहने वाली तिलपिया से कई खतरे को देखते हुये केन्‍द्र सरकार ने इसके पालन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। यमुना और इससे निकलने वाली नहरों में केवल इसी का साम्राज्‍य है। सामान्‍य मछलियों प्रदूषण से तो खत्म हो रही है, दूसरी ओर दुश्‍मन तिलपिया उसकी जान ले रही है। मछली को पसंद न किये जाने से मछुआरे इसे पकड़ते भी नहीं हैं।
मथुरा, आगरा और फिरोजाबाद से गुजर रही यमुना में केवल तिलपिया मछली ही देखने मिल रही हैं। अफ्रीका और पूर्व मध्‍य एशियाई देशों में पाई जाने वाली यह मछली अति प्रदूषित जल में भी जीवित रह सकती है। देसी मछलियां वर्ष में एक बार प्रजनन करती है, जबकि तिलपिया दो बार। दोगुनी गति से इसकी वृद्धि होती है। भारत में प्रतिबंध के बावजूद यमुना में इसके फैलने का कारण उत्‍तर प्रदेश का मत्‍स्‍य विभाग को समझ नहीं आ रहा है। माना जा रहा है कि किसी ने तालाब में इसे पाल हो और बरसात में वहां से बहकर यह नदी में आ गई। जबरदस्‍त प्रदूषण और तिलपिया के आक्रामक रुख से आगरा और इसके आस-पास के इलाकों से गुजर रही यमुना से रेहू, नैन, कतला, सिल्‍वर कार्प, ग्रास काल्‍प, चाइनीज कार्प, टैंगन, सुइया, लाची, सॉल, चिलवा और टेंगडि़या समेत कई प्रजाति की मछलियां लगभग विलुप्‍त हो चुकी हैं। मत्‍स्‍य विभाग के आगरा के निरीक्षक रघुवीर कुमार का कहना है कि तिलपिया के खाने से पेट के अल्‍सर का खतरा रहता है। स्‍वास्‍थ्‍य और काफी तेजी से प्रसार होने की वजह से ही केन्‍द्र सरकार ने इस मछली पर प्रतिबंध लगा दिया था।
मछुआरा चंदन और बंटू ने बताया कि उसके खाने के लिये मछली का संकट हो गया है। जाल फेंकने पर केवल तिलपिया ही पकड़ में आती है। इसे सावधानी से न पकड़ने पर कांटे से उंगलियां फट जाती हैं। इसका स्‍वाद भी अच्‍छा नहीं है। नदी से मछली को निकालने के बाद तीन-चार घंटे में ही गंद और सड़न शुरू हो जाती है। बाजार में तिलपिया पांच से दस रुपये किलोग्राम की दर से कोई खरीदने को तैयार नहीं होता है। जबकि देसी मछलियों की कीमत 45 से 70 रुपये तक है। प्रशासन से ठेका मिलने के बाद ठेकेदार भी परेशान हैं। पर्यावरण की दृष्टि से सबसे चिंताजनक बात है कि अगर इस मामले पर कोई कदम न उठाया गया तो मछली यमुना के माध्‍यम से इटावा पहुंचकर चंबल में फैल जायेगी। इसके बाद इलाहाबाद के संगम के माध्‍यम से गंगा तक चली जायेगी। गौरतलब है कि वर्ष 2007 में चार बार मछलियां प्रदूषण की वजह से मर चुकी है। लेकिन तिलपिया मछलियों की मौत ज्‍यादा संख्‍या में नहीं हुई। हां, देसी मछलियां जरूर खत्‍म हो गई।
(हिन्‍दुस्‍तान के आगरा संस्‍करण से साभार)

2 comments:

Shastri JC Philip said...

यह तो बहुत खतरे की बात है. उम्मीद है कि संबंधित लोग जल्दी ही इस मामले में कार्ररवाई करेंगे

Abhitesh said...

This post came in 2008 and now its 2018 .Present status is "Tilpiya Fish daameged River Ganga and its fishes.I wish some one would have given attention ten years ago.

https://www.livehindustan.com/national/story-chinese-and-african-fishes-becoming-a-threat-to-ganga-yamuna-crisis-on-the-life-of-crocodiles-as-well-central-inland-fisheries-research-institute-reports-2311228.html