Saturday, December 17, 2011

गाय-भैंस हिरासत में, यमुना के प्रदूषक मौज में

- सन्मय प्रकाश
'यमुना नदी को प्रदूषित करने आरोप में आगरा नगर निगम ने 153 गायों और भैंसों को पकड़ लिया। इनका जुर्म था 15 दिसम्बर को यमुना में डुबुकी लगाकर नहाना। इससे नदी मैली हो रही थी। अफसरों ने गाय-भैंसों को 24 घंटे तक बंधक बनाकर रखा। उन्हें छोड़ते समय निगम के पर्यावरण अधिकारी आरके राठी ने पशुपालकों को यमुना के आस-पास नजर न आने की हिदायत दी। वरना पर्यावरण संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन हो जाएगा। उन्होंने धमकी दी कि यदि कानून तोड़ा गया तो पशुपालकों को जेल भेज दिया जाएगा।'
    अफसरों की यह बेतुकी हरकत प्रदूषण नियंत्रण की नाकामी छिपाने की साजिश थी। अधिकतर अखबारों ने इन खबरों को उनके अनुसार छापा। इससे अफसर गदगद हैं। लेकिन, पशुपालकों में दहशत है। हालात ऐसे हैं कि अगर आज अपनी लीलास्थली बृज क्षेत्र में कृष्ण भी गायों के साथ यमुना में नहाने आते तो गिफ्तार होते। यमुना में गंदगी की मूल वजहों का समाधान करने की बजाए अफसर भैंसों और गायों के मालिकों पर कहर ढा रहे हैं। जबकि वनस्पति वैज्ञानिकों का मानना है कि नदियों में पशुओं के जाने से पानी स्वच्छ होता है।
    दरअसल, इस साजिश की शुरुआत एक पखवाड़े पहले हुई। तब यमुना में जलस्तंर आगरा में बेहद कम हो गया। पानी सीवर की तरह काला हो गया। इसे साफ कर ‘जल संस्थान’ आगरावासियों को पेयजल सप्लाई करता है। जाहिर है, इतने गंदे पानी को साफ करना मशीनों के बस में नहीं रहा। नतीजतन, घरों में पीला पानी पहुंचा। लोगों ने इसका विरोध किया। अखबारों में छपी खबरों से अफसरों पर दबाव पड़ा। अब कुछ ऐसा करना था, जिससे लोगों को महसूस हो कि पानी स्वच्छ करने के लिए अफसर प्रयास कर रहे हैं। इसके बाद तो पशुपालकों पर अफसरों ने सितम ढा दिया गया है।
   वनस्पति वैज्ञानिक डॉ कौशल प्रताप सिंह गाय-भैसों को यमुना में जाने से रोकने को सरासर गलत बता रहे हैं। वे कहते हैं कि गाय-भैंसों के यमुना में जाने से पानी लगातार हिलता है। इससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है। नदी में वनस्पति पाए जाते हैं वे सूर्य की रोशनी में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के द्वारा जहरीली चीजों को सोख लेते हैं और ऑक्सीतजन रिलीज करते हैं। गोबर मिलने से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बल मिलता है। इसे नदी के स्वच्छ होने की प्रक्रिया भी कह सकते हैं। उनका कहना है कि गांवों के तालाबों में भी बत्ताखों और भैंसों को छोड़ा जाता है, तो क्या यह कह दिया जाए कि इससे पानी प्रदूषित हो रहा है? वे कहते हैं कि यमुना में प्रदूषण की मुख्य् वजह फैक्ट्रियों से निकलने वाला कचरा, केमिकल और शहरों का सीवरेज है। इसके कारण पानी रंगीन हो जाता है और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित हो जाती है। इससे पानी के अंदर बहुत सारे जीव और वनस्पति नष्ट हो रहे हैं। 
  दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश है कि नालों का गन्दा पानी यमुना में न डाला जाए, बल्कि इस पानी को ट्रीटमेंट करने के बाद ही नदी में छोड़ा जाए। लेकिन भूमाफियाओं की प्रशासन से मिलीभगत के यमुना नदी के भीतर सैकड़ों नई कालोनियां बन गईं। इन कालोनियों के ड्रेनेज के मुहाने यमुना में खोल दिए गए। कूड़ा भी यमुना में फेंका जा रहा है। इन कालोनियों में धड़ल्ले से चांदी साफ करने के कारखाने भी चल रहे हैं। ऐसे दर्जनों कारखानों से तेजाबयुक्त पानी सीधे यमुना में गिर रहा है, जिससे गंदगी और सीवेज की मात्रा में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। लगभग 250 से अधिक कारखानों में चांदी में चमक लाने के लिए घातक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। इनका कचरा भी यमुना में बहाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि यमुना में 80 क्यूसेक पानी प्रतिदिन दिया जाए। लेकिन गोकुल बैराज से आगरा के लिए लगातार पानी नहीं मिला। इसकी सीधी जिम्मेदारी अफसरशाही की है।
   आगरा के 36 नालों को सीधे यमुना में जाने से रोकने के लिए तीन सीवेज सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं। लेकिन ये प्लांट सही से काम नहीं करते हैं। हर पंपिंग स्टेशन पर दो कर्मचारी तैनात हैं। एक कर्मचारी पर 24 घंटे कचरा हटाने का जिम्मा है। यह काम संभव नहीं है। ऐसे में पंपिंग स्टे्शन में जाने वाले नाले कचरे से भर जाते हैं और सीवेज का पानी सीधे यमुना में पहुंच जाता है। गंदे पानी के साथ चमड़ा,पॉलीथीन, मल-मूत्र, पशुओं के शव के टुकड़ों के साथ तमाम गंदगी नदी को लगातार प्रदूषित करती है। इसपर लगाम लगाने की नाकामी छिपाने के लिए अफसर अब गाय-भैंसों को यमुना में जाने से रोका जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यमुना में 60 मिलीग्राम प्रति लीटर अमोनिया है। सौ मिलीलीटर यमुना जल में सात करोड़ कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया हैं। इसके जिम्मेीदार लोग आजाद हैं, लेकिन बेकसूर पशुओं को कैद में जाना पड़ रहा है।


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